Saniyaat Sinhan | सनियात सिन्हण | Saniyat Sinhan

Saniyaat Sinhan
सनियात ‘सिन्हण’

सनियात ‘सिन्हण’ WordtoDictionary.com  एवं स्कम्भा फाउंडेशन(SKAMBHATM) के संस्थापक हैं | सनियात ‘सिन्हण’ का मूल नाम बिनोद कुमार यादव है | झारखण्ड प्रदेश के बोकारो जिलान्तर्गत कथारा के डहिया बस्ती(वर्तमान में सेन्ट्रल कोलफील्ड लिमिटेड का प्रभाग) में 23 अगस्त 1989 को जन्मे सनियात ‘सिन्हण’ की स्कूली शिक्षा बोकारो में हुई है | श्री सिन्हण के पिता का नाम बासुदेव यादव एवं माता का नाम बासमती देवी है | श्री सिन्हण बचपन से ही लेखन कार्य में सेवा प्रदान करते रहे हैं | इनकी बचपन की कविताओं में सबसे प्रसिद्ध कविता ‘चातक पक्षी की राह लगाओ’ है | ब्रह्मविद्या विहंगम योग की दीक्षा सन् 1996ई. में लेने के बाद श्री सिन्हण के जीवन में अद्भुत परिवर्तन हुआ | आध्यात्मिकता की ओर अग्रसर हुए श्री सिन्हण ने अनेक भजनों, चौपाइयों, दोहों आदि का निर्माण किया | किशोरावस्था प्राप्त करने के बाद अनेक आलेख भी अध्यात्म एवं समाज के क्षेत्र में श्री सिन्हण ने लिखना प्रारंभ कर दिया | युवा शक्ति पर विशेष रूप से इनके द्वारा लेख प्रारंभ में लिखे गए | ‘विहंगम योग संदेश’ आध्यात्मिक हिन्दी मासिक पत्रिका एवं ‘सदाफल आरोग्य विज्ञान’ में इनके नियमित आलेख प्रकाशित होते रहे हैं | लेखन कार्य में तन्मयता का परिचय देते हुए श्री सिन्हण ने गुरु की अविस्मरणीय कृपा प्राप्त की और सन् 2019 में प्रकाशित ‘चंद्रोदय’ स्मारिका के सह-सम्पादक बने | श्री सिन्हण द्वारा लिखित अनेक आध्यात्मिक, सामाजिक एवं प्रेरक आलेख प्रकाशित हो चुके हैं | वर्ड टू डिक्शनरी के मूल सम्पादक एवं संस्थापक हैं | स्कम्भा फाउंडेशन के द्वारा अनेक सामाजिक सेवाएँ करने की योजना श्री सिन्हण ने बनायी है | ‘हिन्दी-कल्प’ नामक मासिक पत्रिका श्री सिन्हण के द्वारा ही चलाए जाने की योजना है जिसमें हिन्दी की अद्यतन स्थिति से जनमानस को अवगत कराया जायेगा | 

    श्री सिन्हण अपनी प्रगति का सारा श्रेय सद्गुरु आचार्य श्री स्वतंत्रदेव जी महाराज एवं विहंगम योग संदेश के संपादक श्री सुखनन्दन सिंह ‘सदय’ को देते हैं | श्री सिन्हण का मानना है कि बचपन से ही अध्यात्म के प्रति गहन आस्था होने के कारण गुरु की सहज दया मिलती रही जिससे ये अपने लक्ष्य की ओर आगे बढ़ते रहे और आज जो कुछ भी हैं उसके पीछे ईश्वर-गुरु की दया, संतों का स्नेह, माता-पिता का आशीर्वाद एवं विद्वतजनों का साथ है |

श्री सिन्हण का हिन्दी के प्रति प्रगाढ़ प्रेम


इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हिन्दी में स्नातक की डिग्री प्राप्त करने के बाद हिन्दी भाषा के प्रचार-प्रसार के लिए श्री सिन्हण ने अपने जीवन को समर्पित कर दिया | श्री सिन्हण ने हिन्दी भाषा को जन-जन की भाषा बनाने एवं साधारण व्यक्ति इसे सहजता से समझ जाय इसके लिए अनेक योजनाओं को मूर्त्त रूप देने का दृढ़ संकल्प लिया है | श्री सिन्हण के ये शब्द संभवतः हिन्दी प्रेम की प्रगाढ़ता को इंगित करता है –

देश भक्त कर्तव्य है, वर हिन्दी परचार  |

जन जन जाने विश्व में, और करे व्यवहार ||

                                                            -सनियात

         हिन्दी के प्रति अटूट प्रेम ने ही श्री सिन्हण को ‘हिन्दी पर्यायवाची शब्दकोश’, ‘हिन्दी विलोम शब्दकोश’, ‘व्युत्पत्ति कोश’, हिन्दी नामकोश’. ‘हिन्दी तुकांत कोश’, ‘संधिविच्छेद कोश’ एवं ‘हिन्दी मुहावरा कोश’ बनाने के लिए प्रेरित किया | श्री सिन्हण द्वारा लिखित ‘हिन्दी पर्यायवाची शब्दकोश’ में लगभग एक लाख(100,000) से भी अधिक शब्दों के समानार्थक शब्दों को संग्रहित किया गया है जो अपने आप में अनूठा कार्य है | इस पर्यायवाची शब्दकोश में प्रत्येक शब्दों का सामान्य अर्थ, शब्द भाषा, शब्द भेद एवं लिंग आदि संग्रहित किया गया है | इसे बनाते समय यह ध्यान रखा गया है कि प्रत्येक शब्द का समानार्थक शब्द के साथ ही साथ अंत में विलोम शब्द भी दिया गया है जिससे पाठकों को, छात्रों को विशेष सुविधा होगी | इसमें कुछ पर्यायवाची शब्दों को एक दोहे में या स्वच्छंद काव्य में लिखा गया है जो इस पुस्तक को और अधिक आकर्षक बनाता है | उदहारण के लिए निम्न दोहों को देखें-

गौरव गरिमा आदर इज्जत, मान कद्र सम्मान |

अदब पूछ सत्कार प्रतिष्ठा, एकार्थी सब जान ||

मान प्रतिष्ठा श्रद्धा इज्जत, आदर के पर्याय |

गौरव गरिमा कद्र पूछ सब, एक अर्थ में आय ||

लत इल्लत अभ्यास है, आदत के पर्याय |

प्रवृत्ति प्रकृति संग, आदि चस्का आय ||

तपिश ताप ऊष्मा तपन, आतप के पर्याय |

    धूप गर्मी अरु घाम सब, एक अर्थ में आय ||  -सनियात

श्री सिन्हण ने हिन्दी के क्षेत्र में ही अपने भविष्य को निखारने का प्रयास किया | इनकी हिन्दी के क्षेत्र में सबसे बड़ी सेवा ‘व्युत्पत्ति कोश’ की है जिसमें लगभग डेढ़ लाख से भी अधिक शब्दों की व्युत्पत्ति की गयी है | इस व्युत्पत्ति शब्दकोश में अनेक विशेषताएँ हैं | इसमें शब्दों का सामान्य अर्थ, शब्द-भाषा, शब्द-भेद, लिंग, विलोम, पर्यायवाची, उदहारण आदि देकर इसे नवीनतम एवं अत्यन्त सरल बनाया गया है | इस शब्दकोश का नाम श्री सिन्हण ने ‘ शब्दबोध एक विश्वकोश’ रखा है |

श्री सिन्हण ने भाषा क्या है, व्याकरण क्या है, शब्द क्या है, अर्थ क्या है, विलोम, पर्याय, काव्य, साहित्य आदि अनेक विषयों पर दोहों एवं शुभ्र काव्य के माध्यम से समझाने का प्रयास किया है जिसे स्मरण कर लेने पर चाहे कवि हों, साहित्यकार हों, पाठक हों या फिर छात्र हो सभी को उन विषयों को समझने में बहुत आसानी होती है | उदाहरण के तौर पर भाषा के लिए श्री सिन्हण के इस शब्द पर एक नज़र डालते हैं-

भावाभिव्यक्ति हेतु जो, करे शब्द परयोग |

भाषा तेहि जानिये, जाने-जनावे लोग || -सनियात

इस शब्द में श्री सिन्हण ने भाषा के विषय में बताते हुए कहा है कि अपने भावों की अभिव्यक्ति के लिए जिन शब्दों का प्रयोग किया जाता है उसे भाषा कहते हैं | लोग समझने और समझाने के लिए जिस युक्ति भेद से शब्द-ध्वनि का प्रयोग करते हैं उसे भाषा कहा जाता है | जिह्वा, ओष्ठ्य, तालू आदि के माध्यम से, नयनों के इशारों से, ध्वनि के माध्यम से, संकेताक्षर के माध्यम से, चित्र-चलचित्र के माध्यम से, हाथ-पैर आदि के द्वारा अपने भावों को अभिव्यक्त किया जाता है उसे भी श्री सिन्हण ने इस दोहे में भाषा कहा है | भाषा का मूल उद्देश्य ज्ञान प्राप्त करना है चाहे वह माध्यम जो भी हो |

श्री सिन्हण द्वारा प्रतिपादित अन्य साहित्य(प्रस्तावित)


  1. अध्यात्म कोश (‘अध्यात्म कोश’ में आध्यात्मिक शब्दों की व्युत्पत्ति देते हुए इसकी परिभाषाओं को संचयित किया गया है | अनेक विद्वान अमुक शब्द पर क्या मंतव्य दिए हैं उसे भी संग्रहित किया गया है | इसकी विशेषता है कि शब्दकोशीय आधार पर अर्थ, पर्याय, विलोम, उदाहरण भी इसमें मिलता है |)
  2. योग सागर एक गागर, योग का हिंदी शब्दकोश
  3. तीर्थ सागर
  4. शब्दबोध एक विश्वकोश ( SHABDBODH AN ENCYCLOPEDIA)
  5. राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय दिवस कोश (NATIONAL INTERNATIONA DAY) 
  6. शब्द-संक्षेप हिंदी एवं अंग्रेजी (ABBREVIATION HINDI & ENGLISH)
  7. हिंदी तुकांत कोश
  8. हिंदी मुहावरा कोश
  9. मंत्र संग्रह कोश, संदर्भ सहित (यह संग्रह कोश केवल वेबसाइट के लिए है |)
  10.  मधुमेह क्या क्यों और कैसे समस्या निदान
  11. मेहन स्नान (MEHAN BATH)
  12. युवा शक्ति और भारत
  13. आरोग्यामृत दोहे
  14. काव्य संग्रह कोश(यह संग्रह कोश केवल वेबसाइट के लिए है |)
  15. काव्यार्णव
  16. सहयोगी (इस ग्रंथ में सहयोग के सिद्धान्त पर विस्तृत तर्कयुक्त व्याख्यान किया गया है | एक कनिष्ठ कर्मचारी, अवर कर्मचारी, प्रवर कर्मचारी के सहयोग में रहता है पर प्रवर कर्मचारी के अन्दर क्या भावना रहती है और उसे कैसे दूर किया जा सकता है, वह भावना गलत है तो कैसे, कौन-सी भावना रखकर अपना कल्याण किया जा सकता है ये सभी पर विवरण प्रस्तुत किया गया है | सहयोग से ही ये दुनिया चल रही है, ईश्वर, ब्रह्म, प्रकृति आदि सभी सहयोग में हैं लेकिन कभी बयाँ नहीं करते, मानव में इस बात को लेकर बहुत भ्रान्ति है इसी को दूर करने का प्रयास इसमें किया गया है | इसी में श्रेयभ्रांति के सिद्धांत को प्रतिपादित किया गया है |)
  17. शरीर छोड़ने का विज्ञान (इस पुस्तक में मृत्यु के रहस्य को प्रकट किया गया है | मृत्यु कैसे-कैसे होती है, कैसे मृत्यु की पहचान की जाती है, मृत्यु आने से पूर्व कैसे जाना जाता है कि अब कुछ दिन में मृत्यु आने वाली है, कैसे शरीर से योगिजन बाहर निकल जाते हैं, योगी की मृत्यु कैसे होती है, सांसारिक जन की मृत्यु और योगी की मृत्यु में क्या भेद है, छः माह पूर्व मृत्यु का आभास होना क्या है, किस द्वार से आत्मा के निकलने से कहाँ गमन होता है, जितने योगी, संत, महात्मा है उन्होंने मृत्यु विज्ञान पर क्या कहा है, किन-किन योगियों की मृत्यु कैसे हुई, हस्त रेखाओं से कैसे मृत्यु को जाना जाता है, आयु का निर्धारण ज्योतिषीय विधान से कैसे होता है, उपाय क्या क्या हो सकता है आदि आदि विषयों पर विवरण दिया गया है |)

 

इसे भी जानें ⇓


शब्द  व्युत्पत्ति | निर्वचन
सनियात सनियात‘ शब्द सनि+यात ये दो शब्दों से मिलकर बना है |  ‘षणु दाने’ या षण संभक्तौ’ धातु में उणादि सूत्र खनिकस्यज्यसि0 ( 2.141) से ‘इ’ प्रत्यय  लगकर ‘सनिः’ शब्द निष्पन्न होता है | अर्थात् सनोति ददाति इति सनिः अध्येषणं वा | इस प्रकार सनि शब्द से  किसी कार्य को करने  कि प्रेरणा देना, या किसी कार्य में प्रवृत होना आदि अर्थ लगाया जाता है | यातः शब्द या प्रापणे धातु में ‘क्त’ प्रत्यय लगकर निष्पन्न होता है | गया हुआ, गुजरा हुआ आदि अनेकों प्रकार से इसका अर्थ लगाते हैं | परन्तु यहाँ पर अनेकार्था: धातवः को ध्यान में रखकर प्रवृति के अनुसार इस शब्द का अर्थ प्रवृत होता है इसलिए सनिं यातः इति सनियातः या सेवां सनिं यातः इति सनियातः सेवकः | अर्थात् जो किसी कार्य में दक्ष या निपुण  हो सनियात कहलाता है | व्याकरण शास्त्र  में सनि का अर्थ सेवा तथा पूजा भी होता है और यात का अर्थ गया हुआ या प्राप्त हुआ आदि अर्थ लिया जाता है इसलिये सनियात का अर्थ सेवा में लगा हुआ या गया हुआ भी अर्थ अभिप्रेत है |


Saniyaat meaning in Hindi | सनियात का अर्थ हिंदी में |


शब्द 

 सामान्य अर्थ   

सनियात  1.जो किसी कार्य में प्रवृत हो | किसी कार्य में निपुण  हो | 2. सेवा में गया हुआ | सेवा में लगा हुआ | 3. किसी कार्य को करने की प्रेरणा देना, विशेषतः आचार्य के द्वारा |
शब्द-भाषा  संस्कृत 
शब्द-भेद  संज्ञा
लिंग  पुलिंग 

 

ध्यान देने योग्य
सनियात शब्द को अंग्रेजी में Saniyaat या Saniyat लिखा जाता है | संस्कृत से इस शब्द की व्युत्पत्ति करने पर जो अर्थ प्रकट होता है उसे ऊपर बताया जा चुका है | यदि इस Saniyaat या Saniyat शब्द को अरबी भाषा की दृष्टि से देखें तो कुछ अलग अर्थ निकलता है | अरबी भाषा में Saniyaat शब्द को Saniyyaat शब्द से लिया गया है जिसे उच्चारण में सुनियत या सुनियात कहा जाता है | अरबी में Saniyaat शब्द को लिंग में स्त्रीलिंग स्वीकार किया गया है जो ख़ासकर लड़कियों के लिए प्रयुक्त होता है | Saniyaat शब्द का अर्थ अरबी में ऊँचा, उच्च, स्थान में ऊँचा, रैंक में उच्च, स्थिति में ऊँचा होता है |

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