भावातीत ध्यान(Bhavateet Dhyan) meaning in hindi

भावातीत ध्यान

 

भारत के उत्तर काशी में जन्मे महर्षि महेश योगी पदार्थ-विज्ञान में स्नातक होने के बाद किसी कारखाने में कुछ वर्षों तक कार्यरत रहने के पश्चात् स्वामी ब्रह्मानन्द सरस्वती के सान्निध्य में आये और तत्पश्चात् योग को एक तकनीक के रूप में विकसित करने के लिए क्रियाशील रहे। अपने इस योग तकनीकी का नाम इन्होंने ट्रान्सडेण्टल मेडिटेशन अर्थात् भावातीत ध्यान रखा है, जो देश-विदेश में आज काफी चर्चा का विषय बना हुआ है।
 

यह भावातीत ध्यान ऊपर वर्णित मन्त्रयोग या जपयोग का ही एक रूप है। शान्त चित्त से बैठकर साधक किसी गुरु-प्रदत्त शब्द का मानसिक रूप से जप करता हुआ आँखें बन्द करके विचार को आन्तरिक करता रहता है। इस प्रक्रिया में मस्तिष्क पर किसी प्रकार का जोर नहीं दिया जाता है। 

 

विचार बहिर्मुख होते रहते हैं, मगर मन्त्र की आवृत्ति जारी रहती है, होंठ और जिह्ना प्रायः बन्द ही रहते हैं। इस तरह इस साधन में सिर्फ शब्दों (मन्त्रों) की सहज रूप में मानसिक स्तर पर आवृत्ति के सिवाय मन पर किसी अन्य प्रकार का नियन्त्रण या दबाव अपेक्षित नहीं है।

 
इसमें गुरु द्वारा प्रत्येक व्यक्ति को उनकी प्रकृति के अनुकूल एक विशेष मन्त्र दिया जाता है। यह मन्त्र कुछ भी हो सकता है। यह शब्द-विशेष संस्कृत का भी हो सकता है या कोई निरर्थक शब्द भी हो सकता है। मगर महेश योगी का दावा है कि प्रत्येक मनुष्य के स्नायु मण्डल को एक विशेष शब्द के स्वर-कम्पन से प्रभावित किया जा सकता है। 
 
उसी शब्द-विशेष को ठीक से समझ कर साधक को दीक्षा देना गुरु का काम है। साधक इस मन्त्र को बिना किसी अन्य प्रयास के मानसिक स्तर पर दुहराता रहता है और उसे अन्य किसी प्रकार का नियन्त्रण या ध्यान-प्रक्रिया से मुक्त रहने के लिए कहा जाता है। 
 
इस तरह मन सामान्य रूप से आनन्द-चेतना की ओर जाने लगता है और अन्ततः साधक उस आनन्द से तदाकार हो जाता है। इसमें भी यह मान्यता है कि तब तक ब्रह्म-अनुभूति नहीं हो पाती जब तक इन्द्रियाँ अनुभव करती रहती हैं। मगर जब अनुभव करने वाला ही अपने अस्तित्व को भूल जाता है, तब चेतना की उस अवस्था में ब्रह्म-अनुभूति होती है। 
 
चेतना की इस भावातीत अवस्था की प्राप्ति शब्दों (मन्त्रों) की सहजावस्था में मानसिक आवृत्ति से ही की जाती है। इसमें चेतना के कई स्तरों की चर्चा की जाती है। जागृत, स्वप्न, सुषुप्ति के बाद की चेतना की अवस्था भावातीत चेतना और इसके आगे पाँचवीं अवस्था ब्रह्माण्डी चेतना की है। 
 
इस तरह साधना की इस सामान्य प्रक्रिया के द्वारा ब्रह्माण्डी चेतना तक पहुँचाने का दावा किया जाता है। इस भावातीत ध्यान करने वाले साधकों पर विदेशों में अनेक वैज्ञानिक प्रयोग भी किये जाते रहे हैं। साथ ही इस साधन-प्रक्रिया को बतलाने के लिए विदेशियों से अत्यधिक मुद्राएँ भी अर्जित की जाती हैं। 
 
इसमें अनेक सिद्धियों एवं चमत्कारों का भी समावेश होता जा रहा है, जो अब धीरे-धीरे विशेष आकर्षण का केन्द्र बनता जा रहा है।
भावातीत ध्यान का अर्थ | Bhavatit dhyan meaning in hindi | Bhaavaateet

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