मन्त्रयोग(Mantrayoga) meaning in hindi

मन्त्रयोग

 

मन्त्रयोग में साधक मन्त्रों का जप करते हुए साधना करते हैं। मन्त्र, शक्ति एवं तेज रूप शब्द है, जिसमें आध्यात्मिक जागरण के रहस्य भरे हुए हैं। इन मन्त्रों के स्वरों में एक विशेष कम्पन होता है जो आत्म-चेतना की भूमि को स्पर्श कर उसे जाग्रत कर देता है। मन्त्रों के बार-बार दुहराने की क्रिया को जप कहते हैं। इन मन्त्रों के उच्चारण में एक विशेष प्रकार का आरोह-अवरोह रहता है जो साधक की प्रसुप्त चेतना को जाग्रत करने में सहायक सिद्ध होता है।

साधना में मन्त्रों का का जप पहले वैखरी वाणी से करते हैं। फिर धीरे-धीरे वह मानसिक रूप से होने लगता है और अन्ततः अजपा जप में परिवर्तित हो जाता है- जो इस साधना की सर्वोच्च भूमि है। ओम्, सोऽहं, अहं ब्रह्मास्मि, नमः शिवाय, हरिः तत् सत्, तत्त्वमसि इत्यादि अनेक मन्त्र भारतीय अध्यात्म के अन्र्तगत हैं, जिनका जप साधकों के लिए आत्मज्ञान की उपलब्धि के निमित्त आवश्यक बतलाया गया है।

मन्त्रयोग के द्वारा शरीर के अन्दर ‘नाद’ भी प्रकट होते हैं, जिन्हें साधक ‘अनहद नाद’ के नाम से जानते हैं। इस साधन से ब्रह्माण्डी शब्दों के साथ तादात्म्य स्थापित कर साधक सृष्टि के रहस्यों को जानने में सक्षम हो जाता है। मन्त्रयोग में जप जब भीतर में स्वतः होने लगता है तो वहाँ समाधि की स्थिति प्रकट हो जाती है। जगत् की बाह्य चेतना से अलग होकर साधक उस ब्रह्माण्डी चेतना से तदाकार होने लगता है। ऐसा इस योग के बारे में कहा जाता है।

मुख्य रूप से निम्नलिखित तरीके से मन्त्रयोग या जप साधन किये जाते हैं

1. नित्य: प्रातःकाल एवं सायंकाल में किसी गुरु द्वारा उपदिष्ट मन्त्र का जप नित्यप्रति करना।
2. नैमित्त:- किसी विशेष आध्यात्मिक मुहूर्त एवं पूजा के अवसर पर इस जप को किया जाता है।
3. काम्य:– मन में किसी विशेष इच्छा की पूर्ति के लिए मन्त्र-विशेष का जप करना।
4. निषिद्ध:– किसी अनधिकारी गुरु से सीखा मन्त्रया मिश्रित मन्त्र अथवा गलत ढ› से उच्चरित मन्त्र निषिद्ध कहलाते हैं। कुछ लोग अनजाने में इस तरह का भी जप करते हैं।
5. प्रायश्चित जप:- किसी किये हुए कार्य के प्रायश्चित के निमित्त जो जप किये जाते हैं, उन्हें ‘प्रायश्चित जप’ कहते हैं। इसका भी एक अलग विधान है, जिसके अनुसार जप किया जाता है।
6. अचल:- स्थिरतापूर्वक बैठक कर जो जप किया जाता है उसे ‘अचल जप’ कहते हैं। इसमें साधक दृढ़तापूर्वक अपने आसन पर रहते हुए जप करता है।
7. चल:- कभी-कभी चलते-चलते या खड़े होकर अथवा किसी कार्य को करते समय भी जो जप चलते रहते हैं, उसे ‘चल जप’ कहते हैं।
8. वाचिका:– जिस जप को बार-बार उच्च ध्वनि में किया जाता है उसे वाचिका-जप कहते हैं।
9. उपांशु:- होठों में बुदबुदा कर जिस मन्त्र का जप किया जाता है उसे उपांशु कहते हैं।
10. मनस्त:- इस जप में वाणी से नहीं बोला जाता, बल्कि सिर्फ मन में वैचारिक धरातल पर जप चलता रहता है। साधक आँखें बन्द कर इस जप को मन की भूमि पर करता रहता है, जिससे अन्य सभी विचार दब जाते हैं और सिर्फ मन्त्र के भाव ही मन पर छाये रहते हैं।
11. अखण्ड जप:- अखण्ड जप की साधना कई घण्टों तक अबाध गति से चलती रहती है। इसके लिए समय निश्चित कर लिये जाते हैं और उतने समय में बिना किसी अवरोध के जप चलता रहता है।
12. अजपा:- मन्त्र के अर्थ को मन में धारण करते हुए उसमें लय हो जाना अजपा जप कहलाता है।
13. प्रदक्षिणा:- किसी पवित्र स्थान-विशेष के चारों ओर घूमते हुए जो जप किया जाता है, उसे प्रदक्षिणा जप कहते हैं।
उपर्युक्त सभी प्रकार के मन्त्रों के जप से मन को एकाग्र करके ध्येय में केन्द्रित करने का प्रयास किया जाता है। मन्त्रों की शक्ति भी अपना कार्य सूक्ष्म रूप से करती रहती है। इस तरह मन्त्रयोग मेें मुख्य रूप से मन्त्रों का जप विभिन्न प्रकार से किया जाता है और उसके माध्यम से आत्म-चेतना में लय हो जाने का प्रयास किया जाता है, जो आत्मिक उपलब्धि का कारण बतलाया जाता है।
मंत्र योग का अर्थ | Mantra yoga meaning in hindi

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *